संस्थान का इतिहास
ऐतिहसिक रूप से इसकी शुरूआत सन् 1964 ई. में राजकीय शिक्षा महाविद्यालय के मनोविज्ञान के व्याख्याता श्री जे.एस. गाँधी के द्वारा महाविद्यालय में ही 4-5 बौद्धिक दिव्यांग बच्चों के एक छोटे वर्ग से की गयी थी। अल्पावधि में ही छात्रों की संख्या बढ़ने लगी और इन बच्चों के लिए किराए पर एक अलग भवन लिया गया। इसकी स्थापना बौद्धिक दिव्यांग बच्चों के शैक्षणिक एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से तथा इस तथ्य की पहचान के साथ की गई थी कि ऐसे बच्चों को यथोचित प्रषिक्षण एवं सुविधाएं प्रदान की जाए तो इन्हें पुनर्वासित किया जा सकता है और समाज के मांग के अनुरूप स्वयं को समायोजिक करने में सक्षम बनाया जा सकता है। अब यह संस्थान मनोचिकित्सा विभाग, राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल सैक्टर 32, चण्डीगढ़ भारत के प्रत्यक्ष नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण में है। सन् 1973 में इस संस्थान का नियंत्रण राजकीय शिक्षा महाविद्यालय से जिला शिक्षा पदाधिकारी, चण्डीगढ़ प्रशासन को स्थानांतरित कर दिया गया था।
वर्ष 1978 में भारत सरकार ने आफिस प्रभारी डी.डी.ओ की शक्ति की मंजूरी दी थी और संस्थान का नियंत्रण निदेशक, राज्य शिक्षण संस्थान, चण्डीगढ़ को स्थानांतरित किया गया था। भवन का किराए पर लेने का उद्देश्य लगभग 40 बच्चों को समायोजित करना था। यह पंजाब, हरियाणा एवं चंडीगढ़ का एक मात्र सरकारी संस्थान था। कई माता-पिता अपने बच्चे के नामांकन के इच्छुक थे। वैसे माता-पिता जो दूसरे शहर या राज्य में रहते थे इनके बच्चों के छात्रावास सुविधा हेतु 12 सीटें प्रदान की गयी थी।
दयाभाव से अधिकार आधारित .......................
हम लोगों ने 6 फरवरी 2013 को दिव्यांग व्यक्तियों हेतु सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत कार्य 2013 के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार अर्जित किया है।
दिव्यांगता के क्षेत्र में यह सर्वोच्च पुरस्कार है और यह दिव्यांगता के क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ट योगदान के लिए संयुक्त निदेशक डॉ. बी.एस़ चवन को दिया गया है।
1.3 लाख .
हम लोगों ने 1.3 लाख से अधिक दिव्यांग आबादी तक सफलतापूर्वक पहुँच स्थापित की।.
1964 में स्थापित
राजकीय बौद्धिक दिव्यांग जन पुनर्वास संस्थान को दिसम्बर 1998 में जी.एम.सी.एच. चण्डीगढ़ को स्थानांतरित किया गया था।
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